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________________ जैन- अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास ( शीतल के मुक्ति लाभ से पूर्व ) ३४ ] 33 १६ सम्भव, वीस लाख २० अजित, पचास "" " 11 17 "} 51 #1 भगवान् अरिष्टनेमि अन्य पूर्ववर्ती २१ तीर्थकरो की तरह २२ वे तीर्थकर अरिष्टनेमि के जीवन के सम्बन्ध में भी बहुत कम सामग्री उपलब्ध है । ये वासुदेव कृष्ण के चचेरे भाई थे । इनके नाम का उल्लेख यजुर्वेद में भी मिलता है ।" कल्पसूत्र मे अर्हत् अरिष्टनेमि के जीवन का एक अध्याय है, उसके अनुसार उनके पिता का नाम समुद्रविजय तथा माता का नाम शिवा था । उनका जन्मस्थान सौरीपुर (शौर्यपुर) था । कार्तिक कृष्णा द्वादशी को अपराजित विमान से अवतरित होकर वे माता के गर्भ मे आए और श्रावण शुक्ला पचमी के दिन उन्होने पृथ्वी पर जन्म लिया । उनकी माता ने गर्भकाल मे स्वप्न मे चक्र की नेमि देखी थी अत उनका नाम नेमि या अरिष्टनेमि रखा गया । श्रावण शुक्ला षष्ठी को उत्तर कुरु नामक शिविका पर आरोहण करके भगवान् द्वारावति ( द्वारिकापुरी) होते हुए सीधे रैवतक नामक उपवन मे पहुँचे जहाँ पर उन्होने पचमुष्टि केगलोच किया । तदनतर ढाई दिन का निर्जल उपवास कर हजारो मनुष्यो के साथ अवशिष्ट केशो का लुञ्चन करके उन्होने अनगार अवस्था को धारण किया 13 अर्हतु अरिष्टनेमि लगातार ५४ दिनो तक शरीर की कुछ भी परवाह किए विना तपश्चरण मे मग्न रहे । ५५वे दिन आश्विन कृष्णा अमावस्या को गिरनार पर्वत की चोटी पर वेतस वृक्ष के नीचे उन्हे सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण, निरावरण, अव्याहत केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । १ जैन सूत्राज् भाग १ ( कल्पसूत्र, एपाक्स आफ् दी इण्टरमीडियट तीर्थंकराज्) पृ० २८० २ जैन दर्शन, पृ० ६ तथा इडियन फिलासफी, पुस्तक १, पृ० २८७ 3 तुलना, महाभारत - युगे युगे महापुण्य दृश्यते द्वारिकापुरी, अवतीर्णो हरिर्यत्र प्रभासशशिभूषण 1 रेवताद्री जिनो नेमिर्युगादिविमलाचले, ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् || 7
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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