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________________ २०] जैन अंगशास्त्र के अनुसार मानव व्यक्तित्व का विकास भगवतोसूत्र-इस अग का नाम 'भगवती-व्याख्या-प्रनप्ति' है। सक्षेप मे इसे भगवतीसूत्र तथा व्याख्या प्रजस्ति सूत्र कहा जाता है । इसका अगशास्त्र मे पाचवा स्थान है। इसमे एक श्रुतम्कन्ध तथा १० अध्ययन है। वर्तमान में इसमें ४१ शतक उपलब्ध होते है । इसकी रचना बौद्ध 'सुत्तपिटक' की तरह है। सुत्तपिटक मे महात्मा बुद्ध से पूछे गये प्रश्न तथा उनके द्वारा दिए गए उत्तर सगृहीत है, उसी प्रकार भगवती सूत्र मे भी महावीर से पूछे गए प्रश्न तथा उनके द्वारा दिए गए उत्तरो का संग्रह है। तत्त्व जान के विपय मे सदिग्ध तत्कालीन देव, नरेन्द्र, राजर्पि तथा महर्षियो के द्वारा नव पदार्थ तथा उनके द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल, पर्याय, प्रदेश, परिणाम, यथास्तिभाव, अनुगम, निक्षेप, नय, प्रमाण आदि के सम्वन्ध मे महावीर से जो जो प्रश्न किए गए और महावीर ने उनके जो जो सयुक्तिक उत्तर दिए, उनका सग्रह इस अग में किया गया है।' ज्ञाताधर्मकथा-यह धर्मकथा-प्रधान छठा अग है। इसमे कल्पित तथा अकल्पित दोनो ही प्रकार की कथाओ के आधार पर धर्म का उपदेश दिया गया है । जाताधर्मकथा मे दो श्रुतस्कन्ध है। प्रथम श्रुतरकन्ध के १६ अध्ययन तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के १० वर्ग है। नन्दीस्त्र के अनुसार जाताधर्मकथा मे धर्मकथाओ के १० वर्ग है, जिनमे प्रत्येक धर्मकथा मे पाच-पाच सौ आख्यायिकाएँ है, एकएक आख्यायिका मे पाँच-पाँच सौ उपाख्यायिकाएँ है, एक-एक उपाख्यायिका मे पाँच-पाँच सौ आख्यायिकोपाख्यायिकाएँ है। इस प्रकार कुल मिलाकर अध्युष्ट-साढ़े तीन करोड कथाएँ इस अग मे है। जाताधर्मकथा मे जात अर्थात् उदाहरणभूत व्यक्तियो के नगर, उद्यान, वनखड चैत्य यक्षायतन, समवसरण-धर्मसभा, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोक-परलोक सम्वन्धी ऋद्धिविगेष, भोग का त्याग, प्रव्रज्या, मुनिदीक्षा, पर्याय दीक्षासमय, श्रुतग्रहण, तप-उपधान, सल्लेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोप १ समवायाग, १४०, नदीसूत्र, ४९.
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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