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________________ प्रथम अध्याय : अंगशास्त्र का परिचय [ १७ अंगशास्त्र का विषय तथा विवरण आचारांग-आचाराग वारह अगो में सबसे प्रथम अग है। इसका दूसरा नाम 'सामायिक' भी है।' इसके दो श्रुतस्कन्ध है, जो कि शैली तथा विषय दोनो मे एक दूसरे से अत्यन्त भिन्न है । प्रथम श्रुतस्कन्ध द्वितीय श्रुतस्कन्ध की अपेक्षा अत्यन्त प्राचीन मालूम पडता है । प्रथम श्रुतस्कन्ध मे आठ अध्ययन तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध मे सत्तरह अध्ययन है । इसमे मुख्यतया श्रमण निर्ग्रन्थो के आचार का वर्णन किया गया है । भिक्षु को भिक्षा, गय्या, वस्त्र, पात्र आदि किस प्रकार, कितनी मात्रा मे, किन स्थानो से मागना चाहिए और किस प्रकार उपर्युक्त वस्तुओ का उपयोग करना चाहिए, भिक्षु को किस प्रकार गमन करना चाहिए, किस प्रकार की भापा वोलना चाहिए, उसे कहाँ ठहरना चाहिए, कहाँ मल मूत्र त्याग करना चाहिए, आदि भिक्षु के आचार-सवधी समस्त प्रश्नो के उत्तर आचारांग मे समाविष्ट है। ___ आचार-वर्णन के अतिरिक्त भिक्षु के विचारो को प्रभावित करने के लिए आचारांग मे सुख-दुख, हिंसा-अहिंसा, सम्यक्त्व-मिथ्यात्व आदि विषयो पर भी विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। इस प्रकार हम कह सकते है कि आचाराग भिक्षु के आचार तथा विचार का एक महाग्रन्थ है। ___ आचाराग की महत्ता का एक सवसे महान् कारण यह भी है कि आचाराग अगशास्त्रो मे सबसे प्राचीन ग्रन्थ माना जाता है, अतः इसमे राग्रह किए हुए महावीर के जीवन और तप का विवरण ऐतिहासिको के लिए बहुत ही उपयोगी तथा प्रामाणिक सिद्ध हुआ है। इसके आधार पर ही आज के युग मे जैनधर्म तथा महावीर की ऐतिहासिकता एव प्रामाणिकता प्रतिष्ठिन हुई है। सूत्रकृतांग-सूत्रकृताग १२ अगो मे द्वितीय अग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध तथा २३ अध्ययन है। इसमे सूत्र (सक्षिप्त) रूप मे कथन १. अनगार धन्य, सामायिक आदि एकादश अगशास्त्रो का अध्ययन करने लगा। -~-अनुत्तरोपपातिकदशाग, ३ २ जैनसूत्राज भाग १, प्रस्तावना, पृ० ४७-५३, समवायाग मूत्र, १३६, नदीमूत्र, ४५
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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