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________________ १४ ] जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास इसका कारण आगमो की प्राचीन शैली है, जो कि वेदो मे भी पाई जाती है। भाषा-अगशास्त्र की भाषा अर्द्धमागधी है। समवायाग, भगवती ओववाइय तथा पण्णवणा मे इस बात के स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान् महावीर अपने सिद्धान्तो का प्रचार अर्द्धमागधी भापा मे करते थे और वह भापा सब जीवो को अपनी-अपनी भापा मे परिणत हो जाती थी। स्थानाग सूत्र तथा अनुयोगद्वार मे इस भापा को 'इसि-भासिया' (ऋषिभासिता) कहा गया है। इसी आधार पर हेमचन्द्राचार्य आदि ने इसका नाम 'आप' रखा। अत अर्धमागधी, ऋषिभापिता तथा आप-ये तीनो ही नाम एक ही भाषा के है। पहला नाम उत्पत्तिस्थान (मगध) के कारण है तथा अन्य नाम उस भाषा को सर्वप्रथम साहित्य मे स्थान प्रदान करने वाले ऋपियो से सम्बन्ध रखते है। डा० हर्मन याकोवी ने जैनागम की भाषा को प्राचीन महाराष्ट्री कह कर 'जैन महाराष्ट्री' नाम दिया है, जिसका डा० पिगल ने अपने विख्यात प्राकृत-व्याकरण मे खण्डन करके सप्रमाण सिद्ध किया है कि अर्द्धमागधी मे वहुलता से ऐसी अनेक विशेपताएँ है, जो महाराष्ट्री आदि किसी प्राकृत मे ढूढने से भी नहीं मिलती, इसलिए उपर्युक्त नाम नही दिया जा सकता। नाटको मे जो अर्द्धमागधी पाई जाती है उसमे और सूत्रो की अर्द्धमागधी में समानता की अपेक्षा भेद ही अधिक है । भरत तथा मार्कण्डेय ने अर्द्धमागधी के भिन्न-भिन्न लक्षण बताये है। ये लक्षण केवल नाटकीय अर्द्धमागधी के है। हेमचन्द्राचार्य ने अपने व्याकरण मे अर्द्धमागधी को 'आप प्राकृत' और अर्वाचीन रूप को 'महाराष्ट्री' माना है। इससे यह सिद्ध होता है कि महाराष्ट्री से अर्द्धमागधी वहुत प्राचीन है । अथवा यो कहिए कि अर्द्धमागधी ही महाराष्ट्री का मूल है । १ समवायाग सूत्र, ३४ भगवती, ५ ४, पृ० २३१ ओववाइय, ५६. पण्णवणा, पृ० ५६, (आगमोदय-समिति) २ हेमचन्द्राचार्य का प्राकृत व्याकरण, सूत्र १, ३ ३ भरत नाट्यशास्त्र, १६ ४८, ५०. ४ इन्ट्रोडक्शन टू प्राकृत लक्षण आफ चड, पृ० १९, डा० हार्नली
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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