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________________ [ २४३ जैन संस्कृति मे आत्मा को कर्मों के संस्कार से बचाने के लिए ही पुन जन्म के बन्धन से मुक्त होने की जो योजना बनाई गई, उसके लिए गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्र ेक्षा, परीषहजय और संयमरूप साधन प्रस्तुत किये गए | " सप्तम अध्याय ब्राह्मण तथा श्रमण-संस्कृति • जहाँ तक जैनमुनियों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था का सम्वन्ध है; यह निश्चय रहा कि उनके निमित्त न कोई घर बनना चाहिए, न भोजन और न वस्त्र । ऐसी परिस्थिति मे श्मशान, शून्यागार, गृहा तथा शिल्पशाला आदि मे वह निवास कर सकता था ।" वह शोत से बचने के लिए अग्नि प्रज्वल्लित नही करता था । उसके लिए वस्त्र भिक्षा से प्राप्त होते थे । शीत से बचने के लिए वह कुछ अधिक वस्त्र ले सकता था, किन्तु गर्मी के आते ही वह उन्हें छोड़ देता था । १. इन सबके विवरण के लिए देखिए, इसी पुस्तक का "श्रमण जीवन" अध्याय । २ आचाराग, १, ७, २, १ । ३. वही १, ७, ३ | "
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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