SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ ] जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास रक्षित को हाथी पर विठाया गया तथा लोगो ने उसका सत्कार किया। उसकी योग्यता पर प्रसन्न होकर लोगो ने उसे दास, पशु तथा स्वर्ण आदि द्रव्य दिया।' विवाह-वैदिक धारणा के अनुसार गार्हपत्य (गृहस्थ जीवन) के लिए पत्नी का होना अपेक्षित है। देवताओ की पूजा करने के लिए पतिपत्नी का सहयोग होना चाहिए। स्नातको का विवाह साधारणत उनकी योग्यता, विद्या और चरित्र के द्वारा उत्तम कुल की योग्य कन्याओ से अनायास ही हो जाता था। स्नातको के ब्रह्मज्ञान पर मुग्ध होकर कुछ उच्चकोटि के नागरिक अपनी कन्याएँ उन्हे दे देते थे। इस प्रकार की वैवाहिक योजना का नाम ब्रह्मविवाह था ।३ शतपथ ब्राह्मण मे गृहस्थ के लिए ५ महायज्ञो का विधान है। गृहस्थ का कर्तव्य था कि वह नित्य उन यज्ञों का सपादन करे । पंच महायज्ञो मे ब्रह्मयज सर्वप्रथम है। ब्रह्मयज्ञ मे वेदो का स्वाध्याय प्रधान था । ब्रह्मयज्ञ के अतिरिक्त पितृयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ और अतिथियज्ञ का विधान है । पितृयज्ञ मे पितरो की परितृप्ति के लिए "स्वधा" के साथ जल आदि समर्पित किया जाता था । देवयज्ञ मे "स्वाहा" के साथ समिधा आदि से देवताओ का परितोष किया जाता था। भूतयज्ञ मे प्राणियो की परितृप्ति के लिए नित्य बलि दी जाती थी। अतिथियज्ञ में अतिथि के लिए जल आदि प्रस्तुत करके उनका परितोष किया जाता था ।४ जैनसंस्कृति मे प्राय आरंभ से ही गृहस्थो के व्यक्तित्व के विकास की योजना सुव्यवस्थित विधि से प्रस्तुत की गई है। साधारणतः जैन-गृहस्थ उन्ही नियमो और व्रतो को अंशत. अपनाता था जिनको जनश्रमण पूर्णरूप मे अपनाते थे। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, १ २ ३ ४. उत्तराध्ययन टीका, २, पृ० २२ (अ)। ऋग्वेद, १०, ४५, २४, ५, ३, २, ५, २८,३ । गातिपर्व, ७६, २। गतपथ ब्राह्मण, ११, ५, ६, २ । उपासकदशाग मे जैनगृहस्थो के व्यक्तित्व-विकास का निरूपण किया गया है।
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy