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________________ षष्ठ अध्याय • श्रमण-जीवन [१८५ निरन्तर ऊर्ध्वमुखी विकास करता रहे तो अन्त मे चौदहवे गुणस्थान की भूमिका पर पहुँच कर सदाकाल के लिए अजर, अमर, सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हो जाता है। ऐसे ही श्रमण-जीवन को पंचनमस्कारमत्र मे "णमो लोए सव्वसाहूणं" कह कर नमस्कार किया गया है । यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि जिस मन्त्र मे अरिहंत एवं सिद्ध परमात्मा को नमस्कार किया गया है, उसी मंत्र मे उन्ही के समकक्ष रख कर साधु को भी नमस्कार किया गया है । इससे यह स्पष्ट है कि श्रमण-जीवन अवश्य ही मुक्ति का साधक है, और श्रमण-अवस्था को प्राप्त व्यक्ति किसी दिन अवश्य ही पूर्ण मुक्त हो जाता है । भगवतीसूत्र मे पाँच प्रकार के देवो का वर्णन है । वहाँ महावीर ने गौतम गणधर के प्रश्न का समाधान करते हुए साधुओ को साक्षात् “धर्मदेव" कहा है । वस्तुत साधु धर्म का जीता-जागता देवता ही है। भगवतीसूत्र के चौदहवे शतक मे भगवान् महावीर ने साधुजीवन के अखण्ड आनन्द का उपमा के द्वारा एक बहुत ही सुन्दर चित्र उपस्थित किया है । गणधर गौतम को सम्बोधित करते हुए भगवान् कहते है कि "हे गौतम, एक मास की दीक्षा वाला श्रमण निर्ग्रन्थ वाणव्यन्तर देवो के सुख को अतिक्रमण कर जाता है। दो मास की दीक्षावाला मुनि नागकुमार आदि भवनवासी देवो के सुख को अतिक्रमण कर जाता है। इसी प्रकार तीन मास की दीक्षा वाला साधु असुरकुमार देवो के सुख को, चार मास की दीक्षा वाला ग्रह, नक्षत्र एव ताराओ के सुख को, पॉच मास की दीक्षा वाला ज्योतिष्कदेवजाति के इन्द्र-चन्द्र एवं सूर्य के सुख को, छह मास की दीक्षा वाला सौधर्म एवं ईशान देवलोक के सुख को, सात मास की दीक्षा वाला सनत कुमार एव माहेन्द्र देवो के सुख को, आठ मास की दीक्षा वाला ब्रह्मलोक एव लान्तक देवो के सुख को, नव मास की दीक्षा वाला आनत एव प्राणत देवो के सुख को, दस मास की दीक्षा वाला आरण एव अच्युत देवो के सुख को, ग्यारह मास की दीक्षा वाला १ भगवती, १, १, १, तथा कल्पसूत्र १, १, १, णमो अरिहताण, णमो सिद्धाण, णमो आयरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण ।' भगवती, १२, ६ ।
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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