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________________ १६२ ] जैन- अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास ५ तुच्छोसहिभक्खणया (तुच्छअपविभक्षण) - कच्चे अन्न फलादि का भक्षण करना । कर्मसम्वन्धी अतिचार १५ प्रकार के हे १ इंगालकम्मे (अग्निकर्म ) - लकडी जला कर कोयला आदि बनाने, ईट पकाने, भट्टो मे चूना पकाने आदि का व्यवसाय करना । २ वणकम्मे ( वनकर्म ) —– जंगल के वृक्षों को कटवाने आदि का व्यव साय करना । ३ साडीकम्मे ( शकटकर्म ) - बैलगाडी आदि शकटो के बनाने, वेचने आदि का व्यापार करना । - ४ भाडीकम्मे ( भाटीकर्म) – वैलगाडी, नाव, मकान आदि भाडे किराये पर दे कर धंधा करना । - ५ फोडीकम्मे (स्फोटीकर्म) – जमीन फोडने, सुरग विछा कर स्फोट करने का व्यवसाय करना । ६ दंतवाणिज्जे (दंतवाणिज्य ) - हाथीढात आदि का व्यवसाय करना । ७ लक्खवाणिज्जे ( लक्षवाणिज्य ) - लाख का व्यवसाय करना । ८. रसवाणिज्जे ( रसवाणिज्य ) - मदिरा आदि घातक रसो का व्यवसाय करना । ६ विसवाणिज्जे ( विषवाणिज्य ) - जीव के प्राणो का नाश करने वाले विप, शस्त्रादि को बनाने तथा वेचने का व्यवसाय करना । १० केसवाणिज्जे (केशवाणिज्य ) - केश वाले प्राणियो ( दास, गाय, ऊँट, हाथी) आदि को या केशो को बेचने का व्यवसाय करना । ११ जन्तपीलणकम्मे (यंत्रपीडनकर्म) – यंत्रो द्वारा तिलादि द्रव्यो का पीडन करने (पेरने ) का व्यवसाय करना | १२ निल्लंछणकम्मे (निर्लाछनकर्म ) - पशुओ को नपुंसक करने, उन्हे तप्त लोहे से दागने आदि का व्यवसाय करना । १. उपासकदशाग
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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