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________________ ८ (इ) कुशील निग्रन्य ४. स्नातक (ऊ) आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, रौक्ष्य, साधर्मिक गण, सघ, (ए) साधु के २१ प्रकार के सवलदोप श्रमण-धर्म (अ) महाव्रत (आ) समिति तथा गुप्ति (इ) धर्म (ई) परीपहजय संयम ( १३ ) ७ श्रमण की जीवनचर्या (अ) भिक्षावृत्ति तप (१) बाह्य-तप (२) आभ्यन्तर- तप प्रतिमा सल्लेखना तथा मरणोत्तर - विधान (आ) निवास, मलमूत्रप्रक्षेप तथा शय्या (इ) वस्त्र (ई) पात्र ( उ ) विहार श्रमण जीवन की विचारधारा १. संस्कृति २ ब्राह्मण-संस्कृति ३. श्रमण संस्कृति (अ) जैनसस्कृति (आ) वौद्धसस्कृति (इ) जैन तथा बौद्धसस्कृति का अन्तर ... ब्राह्मण तथा श्रमणसस्कृति का अन्तर (अ) वैषम्य तथा साम्य-दृष्टि (आ) परस्पर प्रभाव और समन्वय ... .... ... सप्तम अध्याय ( ब्राह्मण तथा श्रमण संस्कृति) . ... कुल, पृष्ठ १६० १९० १६० १६१ १६१ १९२ १६३ १६५ १६५ १९६ १९७ १९७ १६६ २०० २०० २०१ २०५ २०५ २०६ २०८ २०८ २०६ २१० २१४ २१४ २१५ २१६ २१६ २१७ २१७ २१७ २२०
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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