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________________ तृतीय अध्याय : जैन-तत्त्वज्ञान [ ८७ नरक और स्वर्ग के वीच मध्यलोक मे निवास करते है तथा जिन्होने मनुष्य-योनि में जन्म पाया है वे मनुष्य है । देव, नारकी तथा मनुष्य को छोड़ जितने ससारी जीव है वे सव तिर्यच कहलाते है। __इन्द्रिय-प्राणी को जो अर्थ ग्रहण (ज्ञान) मे सहायक होती हैं वे इन्द्रियाँ कही जाती है। इन्द्रियाँ ५ है-१ स्पर्गन, २ रसना, ३ घ्राण, ४. चक्षु, तथा ५ श्रोत्र। स्पर्गन इन्द्रिय वस्तु का स्पर्श करके पदार्थ को जानती है । समस्त शरीर में व्याप्त त्वक् (चर्म) ही स्पर्शन इन्द्रिय है। जो वस्तु का स्वाद लेकर पदार्थ का ज्ञान करती है वह रसनेन्द्रिय है । घ्राणेन्द्रिय वस्तु की गध को ग्रहण करती है। चक्षु इन्द्रिय का कार्य वस्तुरूप को देखना है तथा श्रोत्रेन्द्रिय का कार्य वस्तु के गब्द को सुनना है । ____ इन्द्रिय की अपेक्षा ससारी जीव पाच प्रकार के होते है-१ एकेन्द्रिय, २ द्वीन्द्रिय, ३ त्रीन्द्रिय, ४ चतुरिन्द्रिय, तथा ५ पचेन्द्रिय । इन्द्रियो के गणन मे इनका क्रम अपना विशेष महत्त्व रखता है । एकेन्द्रिय जीव वे है, जिनके केवल एक इन्द्रिय, अर्थात् प्रथम (स्पर्शन) इन्द्रिय ही है। द्वीन्द्रिय जीव वे है जिनके दो इन्द्रियाँ अर्थात् प्रथम तथा द्वितीय (स्पर्शन एवं रसना) इन्द्रियाँ है। त्रीन्द्रिय जीव वे है जिनके प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय (स्पर्गन, रसना तथा घ्राण) इन्द्रियाँ है। चतुरिन्द्रिय जीव वे हैं जिनके प्रथम, द्वितीय, तृतीय एव चतुर्थ (स्पर्शन, रसना, घ्राण तथा चक्षु) इन्द्रियाँ है, और पचेन्द्रिय जीव वे है जिनके उपर्युक्त पाँचो ही इन्द्रियाँ है।' इन्द्रियो को दृष्टि मे रखकर ससारी जीव के अन्य प्रकार से भी भेद किए गए है। ससारी जीव दो प्रकार के हैं- त्रस तथा स्थावर । जिन जीवो के मात्र स्पर्शन इन्द्रिय होती है, वे स्थावर जीव कहे जाते है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक, इस प्रकार पाँच तरह के स्थावर है। दो-इन्द्रिय से लेकर पचेन्द्रिय तक के जीव त्रस कहे जाते हैं। जैनधर्म के अनुसार मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के अतिरिक्त पृथिवी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति मे भी जीव है। मिट्टी मे कीडे आदि जीव तो है ही किन्तु मिट्टी १ स्थानाग, ४५८
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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