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________________ ८६ सुइं च लङ्कं सद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणा वि नो एणं ܒ माणुसत्तमि आयाओ जो धम्मं तवस्सी वीरियं लद्ध संवुडे उत्तरायणं पडिवज्जए || १० || सोच्च सहे । निगुणे रयं ।। ११ ।। सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई | निव्वाणं परमं जाइ घयसित व्व पावए ॥ १२ ॥ विगिंच कम्मुणो हे जसं संचिणु खन्तिए । पाढवं सरीरं हिच्चा उड्ढं पक्कमई दिसं ॥ १३ ॥ विसालिसेहि सीलेहिं जक्खा उत्तरउत्तरा । महासुक्का व दिप्पन्ता मन्नन्ता अपुणच्चवं ॥ १४ ॥ अप्पिया देवकामाणं कामरूवविउब्विणो । उड्ढ कप्पेसु चिट्ठन्ति पुव्वा वाससया बहू ॥ १५ ॥ तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जवखा आउक्खए चुया । उवेन्ति माणुस जोणि से दसंगेऽभिजायई । १६ ।। खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पसवो दासपोरुसं । चत्तारि कामखन्धाणि तत्थ से उववज्जई ॥ १७ ॥ चउरंगं दुल्लहं मत्ता संजमं तवसा घुयकम्मंसे सिद्धे मित्तवं नायवं होइ उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायके महापन्ने अभिजाए जसोवले ॥ १८ ॥ भोच्चा माणुस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे केवलं वोहिं वुज्झिया ॥ १६ ॥ पडिवज्जिया | हवइ सासए || २० ॥ -त्ति वेमि ||
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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