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________________ बीयं अज्भयणं (१४) जायणापरीसहे दुक्करं खलु भो निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किचि अजाइयं ॥ २८ ॥ गोयरग्गपविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए । सेओ अगारवासु त्ति इइ भिक्खू न चिन्त ॥ २६ ॥ (१५) अलाभपरीसहे परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्टिए । लद्धे पिण्डे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज संजए ॥ ३० ॥ अज्जेवाहं न लव्भामि अवि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे अलाभो तं न तज्जए ।। ३१ ।। (१६) रोगपरीस हे नच्चा उप्पइयं दुक्ख' अदीणो थावए पन्नं पुट्ठो तेगिच्छं नाभिनन्देज्जा नाभिनन्देज्जा A वेrणाए दुहट्टिए । तत्थहियासए ॥ ३२ ॥ संचिक्खत्तगवेस | एवं खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारवे ॥ ३३ ॥ (१७) तणफासपरीस अचेलगस्स लुहस्स संजयस तवसिणो । तणेसु सयमाणस्स हुज्जा गायविराहणा ॥ ३४ ॥ आयवस्स निवाएणं अउला हवई वेयणा | एवं नच्चा न सेवन्ति तन्तुजं तणतज्जिया ।। ३५ ।। (१८) जल्लपरीसहे किलिन्नगाए मेहावी पंकेण व रएण वा । घिसु वा परितावेण सायं नो परिदेवए ॥ ३६ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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