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________________ ६८ दसवेआलिय १७ – बहुं च खलु भो पावं कम्मं पगडं || १८ - पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुव्वि दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं वेयइत्ता मोवखो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसत्ता अट्ठारसमं पयं भवइ ॥ सू० १ ॥ भवइ य इत्थ सिलोगो जया य चयई धम्मं अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए वाले आयई नाववुज्झइ ॥ १ ॥ जया ओहाविओ होइ इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्म परिब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ २ ॥ जया य वंदिमो होइ पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुया ठाणा स पच्छा परितप्पइ ॥ ३ ॥ जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपन्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ ४ ॥ जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्ठि व्व कव्वडे छूढो स पच्छा परितप्पइ ॥ ५ ॥ जया य थेरओ होइ समइवकंतजोव्वणो | मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्प || ६ || जया य कुकुडंवस्स कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे वो स पच्छा परितप्पइ ॥ ७ ॥ पुत्तदारपरिकिण्णो मोहसंताणसंत | पंकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पइ ॥ ८ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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