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________________ गे पुरुष प्रकाशकीय - चीत . ... जहाँ आदित्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता, वहाँ भी साहित्य का आला-.. .. अपनी प्रभा फैला सकता है । इसलिए साहित्य अर्थात् ज्ञान सूर्य से भी अधिक प्रभास्वर माना गया है। . साहित्य भी वही उपयोगी है जिसमें जीवन-निर्माण की प्रेरणा हो, अन्तः.. करण को पवित्रता और प्रसन्नता प्रदान करने की क्षमता हो। ऐसा साहित्य ही वास्तव में आज के लोकजीवन का मंगल कर सकता है। जैन आगमों में जीवन निर्माण की अनन्त-अनन्त प्रेरणाएं भरी हैं, यद्यपि वह साहित्य प्राकृतभाषा में ग्रथित है, किन्तु फिर भी सतत स्वाध्याय करने वाले साधकों के लिए वह भाषा भी मातृभाषा की भाँति सुबोध और सहज आकर्षण का विषय रही है। मूल पाठों के स्वाध्याय से जो आनन्द और जो भावात्मक प्रेरणा मिलती है, वह उसके अनुवाद से कहाँ मिल पायेगी? इसीलिए जैन परम्परा में मूल आगम-साहित्य के स्वाध्याय की परिपाटी चली आ रही है। . प्रस्तुत पुस्तक में आगमों के वे पाठ संकलित किये गये हैं जिनका स्वाध्याय प्रायः श्रमण-श्रमणी तथा स्वाध्यायप्रेमी सद्गृहस्य करते रहते हैं । इसका संकलन किया है, सेवाभावी श्री अखिलेश मुनि जी ने। श्री अखिलेश मुनिजी की संकलनदक्षता 'मंगलवाणी' के रूप में सर्वोत्तम सिद्ध हो चुकी है। आज तक मंगलवाणी के जितने अधिक संस्करण निकले हैं, और वह जितनी लोकप्रिय हुई है, जैनसमाज के प्रकाशनों में शायद ही कोई दूसरी पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई हो। हम मुनिश्री के इस श्रम के आभारी हैं। इस पुस्तक के पाठ एवं प्रूफसंशोधन आदि कार्यों में प्रसिद्ध विद्वान मुनिश्री नेमिचन्द्रजी महाराज तथा हमारे चिर-परिचित सहयोगी श्रीचन्दजी सुरांना 'सरस' का जो सहयोग मिला उसके लिए हम उनके कृतज्ञ रहेंगे। .... आशा है, यह संकलन पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। मन्त्री सन्मति ज्ञानपीठ
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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