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________________ नंदी - सुतं 1 भुवि च भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अखए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे, एवामेव दुवाल संगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए. अवट्ठिए, निच्चे । से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा -- दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं सुयणाणी उवउत्ते सव्वदव्वाई जाणइ पासइ, खित्तओ णं सुयणाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ. कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ पासइ, भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं भावं जाणइ पासइ, ३३५ गाहा— अक्खर सन्नी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविट्ठ, सत्ते वि एए सपडिवक्खा ॥ १ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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