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________________ ३२० स्वाध्याय-सुधा सुत्तं ५२ से कि तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणंनगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चवखाणाई, पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुयोगदारा, संखेक्जा, वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निजुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधा, अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अटु समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंतागमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जति, परूविज्जति दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, . एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से त्तं अंतगडदसाओ। ज्जात .
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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