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________________ १८ दसवेआलियं जत्थ पुप्फाइ वीयाई विप्पइण्णाई कोट्ठए । अहुणोवलित्तं उल्लं दणं परिवज्जए ॥ २१ ॥ एलगं दारगं साणं वच्छगं वावि कोट्टए । उल्लंघिया न पविसे विऊहित्ताण व संजए ।। २२ ।। असंसत्तं पलोएज्जा नाइदूरावलोयए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए नियट्टेज्ज अयंपिरो ॥ २३ ॥ अइभूमि न गच्छेज्जा गोयरग्गगओ मुणी । कुलस्स भूमि जाणित्ता मियं भूमि परक्कमे ॥ २४ ॥ पडिलेहेज्जा भूमिभागं वियक्खणो । संलोगं तत्थेव सिणाणस्स य वच्चस्स दगमट्टियआयाणं वीयाणि परिवज्जंतो चिट्ठ ेज्जा परिवज्जए ।। २५ ।। हरियाणि य । सविदियसमाहिए ॥ २६ ॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स आहरे पाणभोयणं । अकप्पियं न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ २७ ॥ भोयणं । आहरंती सिया तत्थ परिसाडेज्ज देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पड़ तारिसं ॥ २८ ॥ सम्मद्दमाणी पाणाणि वीयाणि हरियाणि य । असंजमर्कारि नच्चा तारिसं साहट्ट निविखवित्ताणं सच्चित्तं तहेव समणट्ठाए उदगं परिवज्जए ॥ २६ ॥ घट्टियाण य । संपणोल्लिया ॥ ३० ॥ ओगाहइत्ता चलइत्ता आहरे पाणभोयणं । देतियं पडियाइवख न मे कप्पइ तारिसं ॥ ३१ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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