SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छत्तीस अभयणं गव्भवक्कन्तिया जे उ. तिविहा ते वियाहिया । अन्तरद्दीवया तहा ॥१६७॥ अकम्मकम्मभूमा य पन्नरस तीसइ विहा भेया संखा उ कमसो तेसि इइ एसा २६७ अट्ठवीसइं । वियाहिया ||१६ 5 || आहिओ । संमुच्छिमाण एसेव भेओ होइ लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे वि वियाहिया ॥ १६६ ॥ पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । संतइ ठिइ पडुच्च सांईया सपज्जवसिया वि य ॥ २००॥ 'पलिओ माइ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउट्टिई... मणुयाणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २०१ || पलिओ माइ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २०२ ॥ पुव्वकोडीपुहत्तेणं कार्यट्टिई मणुयाणं अन्तरं तेसिमं भवे । अणन्तकालमुक्को अन्तोमुहुत्तं एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ संठाणादेसओ वावि विहाणाई जहन्नयं ॥२०३॥ रसफासओ । सहस्ससो || २०४ || देवा चउव्विहा वृत्ता ते मे कित्तयओ सुण । भोमिज्जवाणमन्तर- जोइसवेमाणिया तहा || २०५ ।। दसहा उ भवणवासी अट्टहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया दुविहा वैमाणिया तहा ॥ २०६ ॥ असुरा नागसुवण्णा विज्जू अग्गी य आहिया । दिसा वाया यणिया भवणवासिणो ॥ २०७॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy