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________________ छत्तीसइमं अज्झयणं . ___२५३ परिमण्डलसंठाणे भइए से उ वण्णओ। • गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।। ४३ ॥ संठाणओ भवे वट्टे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥ ४४ ॥ संठाणओ भवे तंसे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥ ४५ ॥ संठाणओ य चउरंसे भइए से उ वण्णओ। . · गन्धओ रसओ चेव भइए फासो वि य ॥ ४६ ॥ जे . 'आययसंठाणे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ व भइए फासओ वि य ।। ४७ ॥ एसा अजीवविभत्ती समासेण वियाहिया। .. इत्तो जीवविभत्ति वुच्छामि अणुपुव्वसो।। ४८ ।। संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया। सिद्धा गंगविहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ।। ४६ ।। इत्थी पुरिससिद्धा . य तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिगे तहेव य ॥ ५० ॥ उक्कोसोगाहणाए य जहन्नमज्झिमाइ य।. उडढं अहे य तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ।। ५१ ।। दस चेव नपुंसेसुं वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं . समएणेगेण सिज्झई ।। ५२ ।। चत्तारि य गिहिलिंगे अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण य अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई ।। ५३ ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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