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________________ २५० खन्धा य खन्धदेसा य तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य वोद्धव्वा रूविणो य चउव्विहा || १० || एगत्तेण पुहत्तेण खन्धा य लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उत्तरज्भवणं सुहुमा सव्वलोगंमि लोगदेसे य वायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसि वुच्छं चउन्विहं ॥ १२ ॥ असंखकालमुक्कोसं एगं समयं अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा परमाणुणो । उं खेत्तओ ॥ ११ ॥ संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया विय । ठि पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। १३ ।। अणन्तकालमुक्कोसं एगं समयं अजीवाण य रूवीण अन्तरेयं जहन्निया । वियाहिया || १४ || जहन्नयं । वियाहियं ॥ १५ ॥ ।। ।। वण्णओ गन्धओ चेत्र रसओ फासओ तहा । संठाणओ य विन्नेओ परिणामो तेसि पंचहा ।। १६ ।। वण्णओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा ॥ १७ ॥ गन्धओ परिणया जे उदुविहा ते वियाहिया । सुठिभगन्धपरिणामा दुब्भिगन्धा तहेव य ॥ १८ ॥ रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया अम्विला महुरा तहा ॥ १९ ॥ फासओ परिणया जे उ अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेंव गरुया लहुया तहा ॥ २० ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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