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________________ २४८ उत्तरज्झयणं जलधन्ननिस्सिया जीवा पुढवीकटुनिस्सिया । हम्मन्ति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पायए ।। ११ ।। विसप्पे सव्वओधारे . वहपाणविणासणे । नस्थि जोइसमे सत्थे तम्हा जोई न दीवए ।। १२ ।। हिरण्णं जायरूवं च मणसा वि न पत्थए । समलेठ्ठकंचणे भिवखू विरए कयविक्कए ॥ १३ ॥ किणन्तो कइओ होइ विक्रिणन्तो य वाणियो। कयविक्कयम्मि वट्टन्तो भिक्ख न भवइ तारिसो।। १४ ।। भिक्खियव्वं न केयव्वं भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा। कयविक्कओ महादोसो भिक्खावत्ती सुहावहा ।। १५ ।। समुयाणं उंछमेसिज्जा जहासुत्तमणिन्दियं । लाभालाभम्मि संतु? पिण्डवायं चरे मुणी ।। १६ ।। अलोले न रसे गिद्धे जिन्नादन्ते अमुच्छिए। न रसहाए भुंजिज्जा जवणट्ठाए महामुणी ।। १७ ।। अच्चणं रयणं चेव वन्दणं पूयणं तहा। इड्ढीसक्कारसम्माणं मणसा वि न पत्थए ॥ १८ ॥ सुक्कझाणं झियाएज्जा अणियाणे अकिंचणे । वोसटुकाए विहरेज्जा जाव कालस्स पज्जओ ॥ १६ ॥ निज्जूहिऊण आहारं कालधम्मे उवढिए । जहिऊण माणुसं वोन्दि पहू दुक्खे विमुच्चई ।। २० ।। निम्ममो निरहंकारो बीयरागो अणासवो। संपत्तो केवलं नाणं सासयं परिणिव्वुए ॥ २१ ॥ -त्ति बेमि ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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