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________________ २३५ वत्तीसइमं अज्झयणं मणस्स भावं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु. स वीयरागो ।। ८७ ।। भावस्स मणं गहणं वयन्ति मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ८८ ।। भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावहिए व नागे ।। ८६ ।। .. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि भावं अवरज्झई से ।। ६० ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि भावे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। ६१ ॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥ १२ ॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ६३.।। भावे अतित्ते य परिंग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६४ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो भावे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढई लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ६५ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो भाव अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ६६ ।। भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुवखं निवत्तई जस्स कएण दुवखं ।। ६७ ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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