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________________ २३२ उत्तरज्झयणं । गन्धाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। ... वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ५४ ।। गन्धे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ५५ ।। तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य। .. मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ५६ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थो य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ५७ ।। गन्धाणुरत्तस्स नरस्त एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ५८ ।। . एमेव गन्धम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदृढचित्तो य चिणाइ कम्म जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ५६ ।। गन्धे विरत्तो मणओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोखरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिहाए रसं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणन्नमाह। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ६१ ॥ रसस्स जिव्भं गहणं वयन्ति जिव्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेडं अमणुन्नमाहु ।। ६२ ।। रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे वडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ।। ६३ ।। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सएण जन्तू रसं न किंचि अवरज्झई से ।। ६४ ।। - ति ।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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