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________________ २३० उत्तरज्झयणं रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगे वि किलेसवखं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ३२॥ एमेव रूवम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ३३ ।। रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणोपलासं ॥ ३४ ॥ सोयस्स सइं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ३५ ।। सहस्स सोयं गहणं वयन्ति सोयस्स सई गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ३६ ॥ सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे हरिण मिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ॥ ३७॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि सई अवरज्झई से ।। ३८ ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि सद्दे अतालिसे से कूणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो।। ३६ ॥ सहाणगासाणगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणगरूवे । चित्तेहि ते परियावेइ वालें पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥ ४० ॥ सहाणवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ४१ ॥ सद्दे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि । अतुढिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४२ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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