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________________ २०६ उत्तरज्झयणं जो सुत्तमहिज्जन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण वाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ॥ २१ ॥ एगेण अणेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लविन्दु, सो वीयरुइ त्ति नायव्वो ॥ २२॥ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिट्ठा। एक्कारस अंगाइं पइण्णगं दिदिवाओ य ॥ २३ ॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहि य वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ॥ २४ ॥ दंसणनाणचरित्ते तवविणए सच्चसमिइगुत्तीस। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ।। २५ ।। अणभिग्गहियकुदिट्टी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥ जो अस्थिकायधम्म सयधम्म खलु चरित्तधम्म च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥ २७ ॥ परमत्थसंथवो वा सुदिपरमत्थसेवणा वा वि। वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २८ ॥ नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दंसणे उ भइयव्वं । सम्मत्तचरित्ताइ जुगवं पुत्वं व सम्मत्तं ।। २६ ॥ नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ।। ३० ।। निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥३१॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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