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________________ सत्तमं अजभयणं जेसि तु विउला सिक्खा मूलियं ते अइच्छिया । सीलवन्ता सवीसेसा अहीणा जन्ति देवयं ।। २१ ।। एवमद्दणवं भिक्खु अगारि च वियाणिया । कहण्णु जिच्च मेलिक्खं जिच्चमाणे न जहा कुसग्गे उदगं समुद्देण समं एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण ६७ संविदे ॥ २२ ॥ मिणे । अन्तिए || २३ || इह कामणिय दृस्स पूइदेहनि रोहेणं कुसग्गमेत्ता इमे कामा सन्निरुद्धमि आउए । कस्स हेडं पुराकाउं जोगक्खेमं न संविदे ? ।। २४ ।। इह कामाणियट्टस्स अत्तट्ठे एवरज्झई | सोच्चा नेयाज्यं मग्गं जं भुज्जो परिभस्सई ॥ २५ ॥ अत्तट्ठे नावरज्झई | भवे देवे त्ति मे सुयं ॥ २६ ॥ इड्ढी जुई जसो वण्णो आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जई ॥। २७ वालरस पस्स वालत्तं अहम्मं पडिवज्जिया । चिच्चा धम्मं अहमिट्ठे नरए उववज्जई ॥ २८ ॥ धीरस्स पस्स धीरत्तं सव्वधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे देवेसु उववज्जई ॥ २६ ॥ तुलियाण वालभावं अवालं चेव पण्डिए । वालभावं अवालं सेवए मुणि ॥ ३० ॥ चइऊण -त्ति वेमि ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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