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________________ चरित (मं० १२७८), मेरुतुंगकृत 'प्रबंधचिन्तामणि (सं० १३६२), राजशेखरकृत 'प्रबन्धकोश' (सं० १४०५ ), जिनमंडनकृत 'कुमारपालप्रतिबोध (सं० १४६२), यशपालरचित मोहराजपराजय नाटक (१३वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध) एवं पुरातन प्रबंधसंग्रह आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इनके अतिरिक्त स्वयं हेमचंद्र का द्वयाश्रयकाव्य, सिद्धमप्रशस्ति तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुष में अन्तर्भूत 'महावीर चरित' आदि भी उनके जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं । प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् ब्यूहलर ने उक्त स्रोतों में से अनेक का उपयोग करते हुए हेमचन्द्र के जीवन व कृतित्व पर एक विस्तृत निबन्ध लिखा है । आचार्य हेमचन्द्र का जन्म विक्रम संवत् ११४५ (१०८८ ई० ) में गुजरात प्रांत के अन्तर्गत 'धंधुका' नामक ग्राम के एक वैश्यपरिवार में हुआ। उनके पिता का नाम चच्च अथवा चाचिग तथा माता का नाम पाहिणी था । हेमचन्द्र का बचपन का नाम 'चंगदेव' था । पूर्णतलगच्छ के श्री देवचन्द्रसूरि के प्रभाव से चंगदेव आठ वर्ष की अवस्था में श्रमण-धर्म में दीक्षित हुए । २२ वर्ष की आयु ( ११०६ ई० ) में आचार्य सूचक 'सूरि' पद प्राप्त होने पर वे हेमचन्द्र नाम से प्रसिद्ध हुए । हेमचन्द्र के जीवनकाल में सिद्धराज जयसिंह ( १०६३ ११४३ ई० ) तथा महाराज कुमारपाल ( ११४३ - ११७४ ई०) गुजरात के शासक थे। सिद्धराज के साथ आचार्य का प्रथम परिचय संभवतः ११३६ ई० में हुआ जबकि सिद्धराज की मालवा-विजय के उपलक्ष्य में आयोजित एक समारोह में हेमचंद्र ने उनकी प्रशस्ति में एक सुन्दर श्लोक सुनाया ।' धीरे-धीरे दोनों का परिचय प्रगाढ़ मैत्री व पारस्परिक समादर में विकसित हुआ । सिद्धराज के अनुरोध पर हेमचन्द्र ने 'सिद्ध शब्दानुशासन' नामक संस्कृत व्याकरण-ग्रंथ की रचना की । सिद्धराज के पश्चात् कुमारपाल गुजरात के शासक बने । उनके शासनकाल में हेमचन्द्र के सम्मान और प्रभाव में और वृद्धि हुई । कुमारपाल के अनुरोध पर हेमचन्द्र ने योगशास्त्र आदि ग्रंथों की रचना की। लगभग पचास वर्षों तक गुजरात के धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक व राजनीतिक जीवन पर छाये रहकर सन् ११७३ ई० में ८४ वर्ष की आयु में, महाराज कुमारपाल की मृत्यु के कुछ ही पूर्व, आचार्य हेमचन्द्र दिवंगत हुए । हेमचन्द्र प्रणीत साहित्य परिमाण में विशाल व विषयवस्तु की दृष्टि से विविधता सम्पन्न है तथा उनकी 'कलिकालसर्वज्ञ' उपाधि को चरितार्थ करता है । निम्नलिखित ग्रंथ प्रामाणिक रूप से हेमचन्द्ररचित माने जाते हैं -- (१) सिद्धहेमशब्दानुशासन, (२) योगशास्त्र, (३) कुमारपाल चरित या द्वयाश्रय काव्य, (४) छन्दोऽनुशासन, (५) काव्यानुशासन, (६) कोषग्रंथ - अभिधानचिंतामणि, अनेकार्थशब्दसंग्रह, निघंटु तथा देशीनाममाला, (७) त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित, (८) वीतरागस्तुति ( 8 ) द्वात्रिंशिका तथा ( १० ) प्रमाण मीमांसा । इनमें से अनेक पर आचार्य हेमचन्द्र और उनका काव्यानुशासन : ७७
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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