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________________ इतिहास एवं संस्कृति जैन साहित्य का भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है । संगोष्ठी में इस विषय पर भी पर्याप्त चर्चा हुई । विभिन्न विषयों पर निबन्ध पढ़े गये । डा० नरेन्द्र भनावत ने अपने निबन्ध 'जैन धर्म का सांस्कृतिक मूल्यांकन' के वाचन द्वारा विषय प्रवर्तन किया । डा० गुलाबचन्द्र चौधरी ने 'भारतीय कालगणना और जैन - जैनेतर दर्शनों में काल - सिद्धान्त' नामक निबन्ध पढ़ा। दो निबन्ध जैन धर्म और शिक्षा दर्शन पर पढ़े गये । डा० हरीन्द्रभूषण जैन ने 'जैन एजुकेशन इन एशियण्ट इंडिया' नामक निबन्ध द्वारा जैन साहित्य के उन संदर्भों की व्याख्या की जो शिक्षा दर्शन से सम्बन्धित थे । प्रो० चांदमल कर्णावट के जैनागमों में शिक्षातत्त्व खोजकर प्रस्तुत किये। जैन धर्म और भारतीय समाज पर निबन्ध पढ़ा डा० सुदर्शनलाल जैन ने । प्राचीन भारतीय समाज के आर्थिक और व्यापारिक पक्ष पर प्रकाश डाला डा० प्रेम सुमन जैन ने आपका निबंध था- -'एन एकाउन्ट आफ द ट्रेड एण्ड शिपिंग इन प्राकृत लिटरेचर' । इस विषय पर प्रोफेसर वाजपेयी, डा० उपाध्ये एवं डा० भयाणी ने अन्य जानकारी भी प्रस्तुत की । श्री बलवंतसिंह मेहता ने 'अहिंसा सम्मत प्राचीन शिलालेख व राजाज्ञाएं' नामक निबन्ध प्रस्तुत कर यह स्पष्ट किया कि राज्यकार्यं में भी जैन धर्म का प्रभाव रहा है। इस सत्र के अध्यक्ष थे पं० दलसुख भाई मालवणिया एवं सचिव थे डा० कैलाशचन्द्र जैन (उज्जैन) । 1 o इस विषय के दूसरे सत्र के अध्यक्ष थे डा० गोपीनाथ शर्मा ( जयपुर ) तथा सचिव थे- - डा० विद्याधर जोहरापुरकर ( जबलपुर ) । इसमें विद्वानों ने विभिन्न प्रान्तों में जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण भूमिका की चर्चा की । डा० मनोहरलाल दलाल ने 'मालवा में जैन धर्म का ऐतिहासिक सर्वेक्षण' नामक निबन्ध प्रस्तुत किया । डा० वी० डी० जोहरापुरकर ने 'महाराष्ट्र में जैन धर्म' का विवेचन किया। डा० के ० सी ० जैन ने 'जैन कास्ट्स एण्ड देयर गोत्राज इन राजस्थान', डा० जी० एन० शर्मा ने 'जैन राइटर्स एण्ड सोशल एण्ड कल्चरल हिस्ट्री आफ मिडिवल राजस्थान' तथा श्री आर० वी० सोमानी ने 'जैन कीर्तिस्तम्भ आफ चित्तौड़' नामक निबन्ध प्रस्तुत कर राजस्थान में जैन धर्म का विशेष परिचय प्रस्तुत किया । डा० उपेन्द्र ठाकुर का निबन्ध 'जैनिज्म इन मिथिला एण्ड इट्स इम्पेक्ट आन मिथिला कल्चर' तथा डा० कलघाटगी का निबन्ध 'जैनिज्म इन कर्नाटक' विविध जानकारियों से भरपूर थे । डा० ब्रजमोहन जावलिया ने 'साइबेरिया एवं मध्य एशिया में जैनतीर्थ' निबन्ध द्वारा वहां जैन धर्म के अस्तित्व को सिद्ध किया । डा० ए० एन० उपाध्ये ने 'जैन कण्ट्रीब्यूसन्स टू साउथ इंडियन लिटरेचर' निबन्ध द्वारा दक्षिण भारत के जैन साहित्य का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया । १६ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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