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________________ जैन दर्शन के क्षेत्र में संगोष्ठी में चर्चा का प्रमुख विषय जैन प्रमाण-मीमांसा था। विषय-प्रतिपादन किया डा० रामचंद्र द्विवेदी ने अपने 'डिफाइनिंग द प्रमाण' नामक निबंध से । आपने इस पत्र में प्रमाण की परिभाषा पर विचार करते हुए जैनाचार्यों के विभिन्न मतों की समीक्षा की। समंतभद्र सिद्धसेन एवं अकलंक की प्रमाण संबंधी परिभाषाओं के संबंध में डा० मोहनलाल मेहता ने भी जानकारी दी तथा डा० नारायण समतानी ने बौद्ध आचार्यों के प्रमाण-संबंधी विचार प्रस्तुत किये। जैन प्रमाण-शास्त्र के इस विषय को डा० गोकुलचंद्र जैन ने और आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने निबंध 'भारतीय प्रमाण-शास्त्र को जैन दर्शन का योगदान : प्रत्यक्ष प्रमाण के विशेष संदर्भ में' द्वारा जैन दष्टिकोण से प्रत्यक्ष प्रमाण का विवेचन प्रस्तुत किया। डा० कलघाटगी ने प्रत्यक्ष प्रमाण को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। डा० मेहता ने परोक्ष और प्रत्यक्ष प्रमाण का अन्तर स्पष्ट किया तथा डा० द्विवेदी ने अन्य दर्शनों के परिप्रेक्ष्य में प्रत्यक्ष प्रमाण के भेद-प्रभेदों की चर्चा की। ___ जैन प्रमाण मीमांसा के विवेचन को गति दी साध्वीश्री संघमित्राजी ने। आपने अपने निबन्ध 'जैनाचार्यों की शब्द-विज्ञान को देन' द्वारा शब्द प्रमाण के स्वरूप एवं आवश्यकता को स्पष्ट किया। डा. मोहनलाल मेहता का निबध 'कंट्रीब्यूसन आफ जैनिज्म टू इंडियन फिलॉसफी' एवं डा० भागचंद जैन का निबन्ध 'कन्ट्रीब्यूसन आफ जैनिज्म टू द डवलपमेंट आफ बुद्धिज्म' जैन धर्म एवं दर्शन के व्यापक क्षेत्र को छूते थे । अतः द्रव्यविवेचन, गुणस्थान, ज्ञानमीमांसा आदि अनेक बिंदुओं पर विद्वानों ने विचार-विमर्श किया। डा० विमलप्रकाश जैन के निबन्ध 'कन्ट्रीब्यसन आफ जैन-योग इन द प्रेक्टिस आफ स्प्रिचुअल एडवांसमेण्ट' तथा डा० जे० सी० सिकदार के 'जैन कन्सेप्ट्स आफ स्पेस' ने दर्शन की चर्चा को नया मोड़ दिया। डा० ए० एन० उपाध्ये ने इन पत्रों के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। डा० कमलचंद सोगानी का निबंध 'जन एथीकल थ्योरी' काफी चचित हुआ। आपने जैन आचारशास्त्र के सैद्धान्तिक विवेचन के साथ-साथ उसके व्यावहारिक पक्ष को भी स्पष्ट किया । व्यक्ति और समाज के उत्थान में जैन आचार संहिता की उपयोगिता पर डा० सोगानी ने नया चिंतन प्रस्तुत किया। डा० विष्णुप्रसाद भट्ट ने जैन आचारशास्त्र के कुछ बिंदुओं का उपनिषदों की विचारधारा से तुलनात्मक अध्ययन अपने ‘सम जैन एथीकल कन्सेप्ट्स एण्ड द बृहदारण्यक उपनिषद्' नामक निबंध द्वारा प्रस्तुत किया। __ संगोष्ठी के इस विभाग में कुछ ऐसे भी निबंध प्राप्त हुए जिनके लेखक स्वयं उपस्थित नहीं हो सके । डा० पुरुषोत्तमलाल भार्गव का 'जैन कन्सेप्ट्स आफ अहिंसा', डा० टी० जी मैनकर का 'द स्याद्वाद आफ द जैन फिलासफी : ए कन्ट्रीब्यूसन टू इंडियन इपिस्टामोलाजी', श्री जोधसिंह मेहता का 'द कन्ट्रीब्यूसन आफ १४ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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