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________________ कुछ अब प्राप्त नहीं हैं । नियुक्ति नामक आगमों की व्याख्या सबसे पहले आचार्य भद्रबाहु ने ही की थी । वीर निर्वाण के १७० वर्ष बाद उनका स्वर्गवास हुआ । कुछ विद्वानों की राय में नियुक्तियां परवर्ती द्वितीय भद्रबाहु के द्वारा रचित होनी चाहिए । पर वे कब और कौन हुए ? इस विषय में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । परवर्ती श्वेताम्बर ग्रंथों में एक भद्रबाहु का विवरण मिलता है, जो प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर के भाई थे । और उन्होंने 'उवसमाहर' स्तोत्र की रचना की है । वराहमिहिर रचित 'संहिता' ज्योतिष का प्राचीन और महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । उसमें जो रचनाकाल दिया हुआ है उसके अनुसार वराहमिहिर चौथीपांचवीं शताब्दी में हुए थे । अतः द्वितीय भद्रबाहु - परंपरा के अनुसार वराहमिहिर के भाई होने से पांचवीं शताब्दी के ही सिद्ध होते हैं । इन भद्रबाहु द्वारा वराहमिहर संहिता की तरह 'भद्रबाहुसंहिता' नामक ग्रंथ बनाने की प्रसिद्धि है । 'भद्रबाहु संहिता' प्राकृत भाषा में रची गयी थी । यह अठारहवीं शताब्दी के महान जैन विद्वान मेघविजय उपाध्याय रचित वर्षं प्रबोध - मेघमहोदय नामक ग्रंथ में उद्धृत प्राकृत गाथाओं से सिद्ध होता है । चातुर्मास कुलक और तिथि कुलक नामक रचना की उद्धृत गाथाएं प्राकृत की ही हैं। पर मूल भद्रबाहु संहिता प्राकृत में ही अभी तक पूर्ण रूप से कहीं प्राप्त नहीं हुई है। उसकी खोज की जानी चाहिए । कुछ वर्ष पूर्व अजीमगंज का एक ज्ञान भंडार कलकत्ते के जैन भवन में आया । उसकी एक हस्तलिखित प्रति में भद्रबाहु संहिता का अर्धकांड प्राकृत भाषा में लिखा हुआ मिला। यह प्रति प्राचीन नहीं है । संवत् १८६५ की लिखी हुई है और उसमें अन्य रचनाएं भी आगे-पीछे लिखी हुई हैं । अतः यह संग्रह - प्रति है, जो पुरानी प्रतियों के आधार से संकलित की गई लगती है । इसमें अर्धकांड की २० गाथाएं हैं । उनमें से प्रारंभ और अंत की गाथाएं नीचे दी जा रही हैं भद्रबाहु संहिताया अर्धकांडम् आदि नमिऊतिलोअनाहं पणमामि सन्वागमनिहि वीरं । वुच्छामि अग्घकांडं जह कहियं जिणवरिदेहि ॥ ] ॥ इय अग्घ कंडसारं पुन्निम निय रिक्खं काल पयारं भणिओ जो जाणह सव्व दंसीओ ||२०|| इति पूर्णिमात्रिक नक्षत्र संयोगानां फलम् संजोयं । मेघ विजय के मेघ महोदय से प्राप्त इन २० गाथाओं का मिलान करने से मालूम हुआ कि उनमें पाठ-भेद काफी है और उस ग्रंथ में वे एक जगह न होकर, कई स्थानों पर यथाप्रसंग उद्धृत की हुई हैं । 'भद्रबाहु संहिता' नामक एक ज्योतिष ग्रंथ संस्कृत में भी प्राप्त है और वह आचार्य भद्रबाहु और हरिभद्र की अज्ञात रचनाएं : १०७ - अंत -
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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