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________________ (७५) थी। इनकी उत्पत्ति उग्रवंश के जिनदत्तराय से कही जाती है। बाद में इनकी राजधानी कारकले में रही! बुजानन सा० लिखते हैं कि तुलुव के यह बलवान जैन राजा थे। । १७-'धरणीकोटा' के राजा भी जैनी थे। इनमें कोट 'भीमराय, 'फोट केतकराय श्रादि प्रसिद्ध थे। . . . . १-होटसल राजाओं को मुसलमानों ने सन् १३२६ मैं नष्ट कर दिया था। उस समय दक्षिण भारत में एक क्रान्ति सी मच गई थी और उसे क्रान्ति का ही परिणाम था कि 'विजयनगर साम्राज्य का जन्म हुआ। यद्यपि इस क्रान्ति में ब्राह्मणों का मुख्य हाथ था और इस कारण विजयनगर के राजाश्रों में उन्हीं की ज्यादा चलती थी, परन्तु तो भी इन राजाओं की जैनधर्म के प्रति सहानुभूति थी। इसका एक कारण था और वह यह कि उस समय हिन्दू -आर्यमान को संगठित होकर मुसलमानों को परास्त करना आवश्यक हो रहा था। इसी उद्देश्य को लक्ष्य कर विजयनगर के राजाओं ने जैनधर्म के प्रति सहानुभूति रक्खी और किन्हीं-किन्हीं ने उसे अपनाया भी। राजकुमार 'उग्र' जैनधर्म में दीक्षित हुप थे तथापि राजा 'देवगज द्वितीय ने विजयनगर में एक जैनमन्दिर धनधाया था। राजा हरिहर द्वितीय के सेनापति 'इरुगप्प जैनी' थे। उन्होंने अपने भुजविक्रम को प्रकट करते हुए जैन प्रभावना के अनेक कार्य किये थे। इन्हीं राजा के एक अन्य सेनापति सिरियरण के पुत्र 'वैचप्प' थे। उन्होंने काइण ,
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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