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________________ (६०) जैनधर्मानुयायी था। इस दीवान का नाम और काम आज अक्षातकाल महाराज की स्मृति में सुरक्षित है। (३४) धर्मवीर बाबू धर्मचन्द्रजी। कविधर वृन्दावन जी जैन समाज में प्रख्यात् हैं। आपके ही पिता बाबू धर्मचन्द्र जी थे। वह काशीजी में वावर शहीद की गली में रहते थे। बड़े भारी धर्मात्मा और गण्य-मान्य पुरुष थे। शरीरबल में काशी का कोई भी वीर उनका सामना नहीं कर पाता था। एक बार गोपालमन्दिर के अध्यक्ष जैनियों के पञ्चायती मन्दिर का मार्ग बन्द करने पर उतारू हो गये। रात भर में उन्होंने वहाँ एक दीवार खड़ी कर दी। जैनी दौड़े हुए बाबू जी के पास आये और वारदात कह सुनाई । उनका धार्मिक जोश उमड़ पड़ा। वह उठ खड़े हुए और जाकर देखा, डेढ़ श्रादमी के बराबर ऊंची दीवार खड़ी है। झट, छलांग मार कर वह उस पर चढ़ बैठे और लातों-घूसों से ही उसको चकनाचूर कर डाला । ब्राह्मण भी लाठियाँ लेकर उन पर टूट पड़े, पर धर्मचन्द्र जी भी तैयार थे। उन्होंने लाठी उठा कर उन्हें ललकारा! मारते खाँ का सामना करने को फिर भला कौन टिकता ? बावू जी ने अपने शौर्य से यह संकट पल भर में दूर कर दिया। धर्म के लिए मर मिटने की साध को ही
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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