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________________ (५१) विशेष वर्णन "जैनचीरों का इतिहास और हमारा पतन" (पृ० १६-१०२) नामक पुस्तक में देखिये । (२७) हस्तिकुंडी के राठौड़ वीर। हस्तिकुण्डा (राजपूताना) में सन् ११६ ई० से 'विदग्धराज' राज्य करता था। यह राठौडवीर जैनधर्मानुयायी था । इसका पुत्र 'मम्मट' भी जैनधर्मभुक्त था। मम्मट का पुत्र 'धवल' पराक्रमी जैनराजा था। वह हस्तिकुरी के राठोडगंश का भूपण था । मेवाड पर जव मालवा के राजा मुअजे आक्रमण किया, तब यह उससे लडा था। सांभर के चौहान राजा दुर्लभराज से नाडोल के चौहानराजा महेन्द्र की इसने रक्षा फी थी। धरणीवराह को इसने आश्रय दिया था। सारांशतः धवल जैसे जैनवीर में यह परोपकार और साहसी वृत्ति होना स्वाभाविक था। जैनधर्म को भी इसने उन्नति की थी। (२८) जैनवीर कक्कुक। मंडोर ( राजपूताने ) में 'प्रतिहारश' के राजा राज्य करते थे। उनमें अन्तिम राजा 'कक' बड़ा पराक्रमी था। यह जैनधर्मानुयायी था। इसके दो शिलालेख वि० सं० ११८
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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