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________________ (४८) 'धग' (EYA-LEE) और 'कीर्तिवर्मा' (१०४६-११००) थे। राजा धन के राज्यकाल में जैनी उन्नति पर थे। खुजराहो में इन्हीं राजा से आदर प्राप्त सूर्यवंशी 'वीर पाहिल' ने सन् ६५४ में जिनमन्दिर को दान दिया था। किन्तु अभाग्यवश इन वीरो की कीर्तिगरिमा कराल काल के साथ विलुप्त होगई है। (२२) परमार वंशीय जैन-राजा। ' परमारवंश की नींव 'उपेन्द्र' नामक सरदार ने ई० नवी शताब्दि में डाली थी। कहते हैं इसीने प्रोसियापट्टन नगर वसाया था और वहाँ अपने वाहुवल से यह राज्य जमा बैठा था। जैनाचार्य के उपदेश से यह अन्य राजपूतों सहित जैनी हो गया था। श्रोसवाल जैनी अपने को इसी का वंशज बताते हैं। __ दशवीं शताब्दि में परमारों का श्राधिपत्य मध्यभारत में था और धारा उनकी राजधानी थी धारा के परमार राजाओं की छत्रछाया में जैनधर्म भी विशेष उन्नत था । प्रसिद्ध राजाभोज' इसी वंश में हुआ था। इसने अनेक जैनाचार्यों का आदर सत्कार किया था और कहते है कि अन्त में यह जैनी हो गया था। यह जितना ही विद्या-रसिक था, उतना ही वीर-पराक्रमी भी था। परमारवंश में राजा नरवर्मा भी प्रसिद्ध वीर थे। इन्होंने जैनाचार्य बल्लभसूरि के चरणों में सिर झुकाया था।
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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