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________________ (४०) हैहय अथवा कलचूरि जैनवीर। हरिवंश भूषण जैनवीर अभिचन्द्र द्वारा स्थापित दिवंश की ही एक शाखा हैहय अथवा कलचुरि थी । वंश के मूल संस्थापक की भाँति इस शाखा के राजगण भी जैनधर्मानुयायो थे। विक्रम सं०५५० से ७६० तक इस शाखा के राजाओं का अधिकार चेदिराष्ट्र (बुन्देलखण्ड ) और लाट (गुजरात) में था । दक्षिण भारत में भी कलचूरि राजालोग सफल शासक थे और वहाँ जैनधर्म के लिए उन्होने बड़े-बड़े कार्य किये थे। इस वंश के एक राजा शङ्करगए थे। इनकी राजधानी जबलपुर जिले का तेवर (निपुरी) नगर था। यह जैनों में कुलपाक तीर्थ की स्थापना के कारण प्रसिद्ध हैं। किन्तु हैहयो में 'कर्णदेव राजा प्रख्यात् थे। यह पराक्रमी वीर थे। इन्होंने कई लड़ाइयाँ लड़ी थीं। मालवा के राजा भोज को इन्होंने परास्त किया था। गुजरात के राजा भीम से इनका मेल था। इनका विवाह हूणजाति (विदेशी) की पावन देवी से हुवा था !! गुजरात के चालुक्य योद्धा। गुजरात में सन् ६३४ से ७४० तक चालुक्य नरेश शासना *वम्दई प्रा० जनस्मार्क पृ०१३-१४ भारत के प्राचीन राज-कर मा० पृ०४८-५०
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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