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________________ स्मशान था। वह वहीं जाकर श्रासन लगा बैठे। किसीसे मतलब नहीं-वह अपने आत्म-स्वातन्त्र्य पाने के उपायों में ध्यानमग्न थे। किन्तु कितने भी शान्त और निस्पृह रहिये, परन्तु दुष्टों के लिए साधु पुरुषों का रूप ही भयावह है-वह उनके स्वरूप को सहन नहीं कर सकते । इस प्रकार की दुष्टता को लिये हुए तव एक रुद्र नामक जीव उस स्मशान में श्रा निकला। भगवान को देखते ही वह आग बबूला हो गया। उसने मनमाने ढङ्ग से भगवान पर प्रहार करने शुरू कर दिये। किन्तु सचे सत्याग्रही महावीर अपने ध्यान में अटल रहे। उन्होंने उस रुद्र की ओर तनिक भी ध्यान न दिया। दुष्टता की भी हद होती है। सत्य के समक्ष असत्य टिकता नहीं। यही हाल रुद्र का हुआ । अन्त में वह अपनी करनी से हताश हो गया। फिर उसे होश आया, उन महापुरुष की दृढ़ता और सहनशीलता का । वह स्वयमेव उनके सामने नतमस्तक हो गया। सत्याग्रह का यह सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। इसलिये आधुनिक सत्याग्रही के लिए भगवान महावीर एक अनुकरणीय श्रादर्श हैं । अब कहिये, यह आदर्श जैनों के मस्तक को ऊँचा करने वाला है या नहीं? __ भगवान महावीर जैनियों के अन्तिम तीर्थकर थे। इन्होंने देश-विदेशों में घूम कर सत्य-धर्म का प्रचार किया था और आज से करीब ढाई हज़ार वर्ष पहले उन्होंने पावापुर (विहार प्रान्त) से मुक्ति-रमा को वरा था।
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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