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________________ न थे। वह फिर रणक्षेत्र में प्रा डटे, किन्तु अब के दानों राज्या में सन्धि हो गई । भला, देश के लिए मतवाले राष्ट्रसङ्घ वाले क्षत्रिय-वीरी के समक्ष मगध साम्राज्य के भाडेतू सैनिक टिक हा फैसे सकते थे? इस सन्धि के साथ ही लगध सम्राट श्रेणिक विम्बसार के साथ राजा चेटक की पुत्री चेलनी का विवाह हो गया। चेलनी पक्की धाविका थी और श्रेणिक वौद्ध-धर्मावलम्बी था। इसलिये प्रारम्भ में तो चेलनी को बड़ा आत्म-सन्ताप हुआ था, किन्तु उपरान्त उसने साहस करके अपने पति को जैनधर्म का महत्व हृदयहम कराना प्रारम्भ किया और सौभाग्य से वह उसमें सफल भी हुई। इस प्रकार न केवल राजा "चेटक", सेनापति "सिंहभद्र" और अन्य राष्ट्रीय सैनिक ही जैनधर्मभुक्त थे, अपितु सम्राट् "श्रेणिक", युवराज "अभयकुमार" और अन्य सैनिक भी जैनधर्म के भक्त थे। इन सब चीरों के चरित्र यदि विशदरूप में लिखे जाये, तो एक पोथा बन जाय, परन्तु तो भी संक्षेप में इन जैन वीरों के खास जीवन-महत्व को स्पट कर देना उचित है। राजा "चेटक" के व्यक्तित्व का महत्व उनके राष्ट्रपति होने में है। योरुप के चीसवीं शताब्दि वाले राजनीतिशो को प्रजातन्त्र शासन पर घना अभिमान है, परन्तु वह भूलते है, भारत में इस शासन-प्रथा का जन्म युगो पहिले हा चुका था।
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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