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________________ ( १५ ) सत्रहवे ओर अठारहवें तीर्थङ्कर सार्वभोम चक्रवर्ती सम्राट थे । सालहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था । तब घहाँ पर काश्यपवंशी राजा विश्वसेन राज्याधिकारी थे। इनके पेरादेवी नाम को रानी थी। उसी के गर्भ से शान्तनाथ भगवान का जन्म हुआ था। युवा होने पर पिता ने इनका राजतिलक कर दिया और तव राजा हो कर इन्होंने पदण्ड पृथ्वी पर अपनी विजय पताका फहराई थी । उपरान्त राज-पाट छोड़ कर श्रात्म स्वातन्न्य पाने के लिए उन्होंने विषय-कपाय रूपी वैरियों को परास्त कर के मोक्ष- लक्ष्मी को घरा श । इन्ही की तरह सत्रहवें तीर्थकर कुंथुनाथ ने भी प्रबल अक्षौहिणी लेकर सार्वभौम दिग्विजय कर के चक्रवर्ती पद पाया था । यह भी हस्तिनापुर में कुरुवशी राजा सूरसेन की पत्नी रानी कान्ता की कोख से जन्मे थे । अठारहवें तीर्थङ्कर अरहनाथ थे । इनका जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था। तय वहाँ पर सोमवंश के काश्यपगोत्री राजा सुदर्शन राज्य कर रहे थे। उनकी रानी मित्रसेना अरहनाथ जी की माता थी । इन्होंने भी समस्त पृथ्वी पर अधिकार जमा कर चक्रवर्ती पद पाया था। इनके समय से ही ब्राह्मण वानप्रस्थ साधुगण विवाह करने लगे थे । इस प्रथा का प्रवर्तक जमदग्नि नामक संन्यासी था । और जब अरहनाथ जी मुक्त हो गये, तब परशुराम ने क्षत्रियों को निःशेष करने
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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