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________________ (४८) মুহূৱাৰো । इम ग्रन्थ के कर्ता श्री. ब्रह्मचारी गेवीलालजीका जन्म भींडर (उदयपुर)में नरमिपुरा दि जैन जातिमें वि० सं० १९४० में हुआ था। आपके पिताका नाम नाहरजो था। १७ वर्षकी अवस्थामें आपका विवाह हुआ था । कर्मयोगमे ७ पुत्रोंकी प्राप्ति हुई थी। किन्तु ५ पुत्रों का व आपकी धर्मपत्नीका वियोग में० १९७० में होगया तथा अवशिष्ट दो पुत्रोको भी प्लगने उठा लिया ! संप्तारकी इम असारता जान आपने ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर लिया। आपके इम कल्याणमार्गमें श्री १०८ ऐलक श्री पन्नालालजी और ब्रह्मचारी चांदमलजी मूल कारण हैं। स० १९७३ में त्यागी होकर आपने ग्राम कुणमें चातुर्मास किया। वहां कुछ पढ़ने का कार्य किया। फिर सं० १९७४ में उदामीन आश्रम इन्दोरमें श्री० पं० पन्नालालनी गोधा व श्री० ५० अम. चदनीकी संगतिका लाभ हुआ। सं० १९७५में बड़वानी, १९५६में धुलिया, १९७७ में लाडनूं तथा १९७८में कलकत्ता, १९७९ में प्रतापगढ़, १९८०में फिर बड़वानी, १९८१में मनावर, १९८२में आबूगेड़, १९८३में रखियाल (गुजरात), १९८४ में उजेड़िया (गु०), १९८५ में लाडनूं, १९८६में बेगु (मारवाड़) में फिर इस साल अर्थात् सं. १९८७में बड़वानीमें चातुर्मास किया है। शेष काल तीर्थयात्रा, प्रतिष्ठा व धर्मध्यानमें व्यतीत किया । अब भाप बड़वानीमें एक त्यागीमाश्रम खोलकर वहीं कुछ त्यागियों के साथ धर्मसापन कर रहे हैं। प्रकाशक।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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