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________________ जैन तीर्थयागदर्शक। [१८९ सड़क काटकर परिक्रमा है । वह माघ मील की पड़ती है। परि. क्रमा देकर पहाड़की तलेटोमें भाजावे । (३१०. ) नलेटी (गजपंथ)। यहांपर १ कुआ, बगीचा, मंदिर व त्यागियों का आश्रम है। त्यागी बंसीलाल आदि रहते हैं। यहां पर सुपात्र दान करके धर्मशालामें जावे व भंडार देकर नाशिक चला जावे । किमी भाईकी इच्छा हो तो अनगिरिकी यात्रा करके फिर नाशिक आवे व वलगाड़ी करके मागीतंगो चला जावे। अगर बलगाड़ीमे न जावे वो लौटकर म्टेशन आवे । टिकिट ॥) देकर मनमाडका लेलेवे । बलगाडीका गम्ता कष्टसाध्य है। (३२०) अनिशयक्षेत्र अनंगिरि (अंजनगिरी)। नाशिकमे त्रम्बक महादेवके गम्ने में पश्चिमकी तरफ १४ मील दूर अंजनी ग्राम है । यह कम्बा दक्षिणकी तरफ १ मील दूर सड़कमे है। यह एक जैनियों का प्राचीन शहर था । आसपाम जंगलमें टुटेफुटे बहुत मंदिर हैं। ? मंदिरके पास बहुत बड़ी वावड़ी है । ग्रामके पास तालाब, व धर्मशाला है । जंगल में लाग्वों रुपयाकी लागतके १० मंदिर टूटेफुटे हैं। एक अखंडित प्रतिमा छापरा ग्राम के पास विराजमान है। यहां पर पुनारी रहता है। किसी आदमीको साथ लेकर पहाड़ ऊपर जाना चाहिये । पहाड़ २ मील दूर पड़ता है । पहाइपर १ गुफा व १ पानीका कुंड है। १ गुफा मंदिर है । भीतर बहुत खंडित-अखंडित प्रतिमा विराजमान हैं। यही गुफा मुनिरानोंक ध्यानकी है । अंजना मुंदरीने नहीपर शैक हनूमानको जन्म दिया था । उपर जानेको सीढ़ियां
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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