SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | [ १७७ है। वहांपर २ मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं। इन दोनोंका इकट्ठ | नाम बाहुबली कुंभोज बोलते हैं। यहां पर मुनीम पुजारी रहता है । बड़े २ मुनियोंने यहांपर ध्यान किया था, इससे यह महा पवित्र स्थान है | पासमे नैना ग्राम है । उसमें भी १ मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं । इस पहाड़ के आस-पास नजदीक बहुत ग्राम हैं । इन्हीं मोंमें आहार करके मुनि आनंदसे ध्यान करते थे । कुछ भंडार देकर लौटकर स्टेशन हातकलंगड़ा आवे | यहांसे किराया ।) देकर मिरनका टिकट लेलेवे | ( २९४ ) मीरज जंक्शन | स्टेशन मे २ मील ग्राम है। ४ दि० जैन मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं। स्टेशनपर १ ब्रह्मणकी धर्मशाला है । यहांसे १ रेलवे सांगली जाती है । टिकट ) है । 1 ( २९८ ) सांगली शहर । Į यह शहर भी अच्छा है | स्टेशन से १ मील दूर है । २ मंदिर और अच्छी प्रतिमा ना बहुत घर जैनियोंके हैं । १ घर्मशाला बोडिंग व कन्याशाला है। लौटकर फिर मीरज आवे | मीरजसे ||) 1 टिकटका देकर कुंडलरोड उतर पड़े । ( २९३ ) कुंडल रोड़ | स्टेशन से ३ मील दूर ग्राम है । १ धर्मशाळा व दि० मंदिर है । १ प्रतिमा प्राचीन है । कुछ घर दि० जैनियोंके हैं। यहांसे पुजारीको साथ लेकर पहाड़पर जाना चाहिये । ( १९७) श्री झरीबरी पार्श्वनाथ । पहाड़ पर जानेकी सीढ़ियां लगी हैं। १ मीकी बढ़ाई है। १२
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy