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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१७१ कर एक प्राचीन मंदिर है जिसमें गोमट्टस्वामीकी ५ हाथ ऊँची प्रतिमा महा मनोज्ञ है । फिर पहाडके आस-पास जंगल में प्राचीन टूटे फूटे मंदिर हैं। वहींपर प्रतिमा व शिलालेख हैं। एक जानकार आदमीको साथ लेकर सबका दर्शन करें। यहांकी प्राचीन रचना देखकर मानन्द प्राप्त होता है। परन्तु भान इनकी मरम्मत कराने तथा देखनेवाला भी कोई नहीं है। किमी दिन यह बड़ा भारी शहर था । बड़े२ धर्मात्मा धनाट्य रहते थे। उन्हीं लोगोंने यह रचना कराई थी। फिर यहांसे लौटकर तीर्थली लौट आवे । मोटरका २) भाड़ा देकर सीमोगा शहर उतर पड़े । (२८२ ) सीमोगा शहर । नदीके किनारे शहरसे १ मील अन्यमनियों की बड़ी भारी धर्मशाला है। यहांपर सब बातका आराम है। शहर अच्छा रमणीक व व्यापारप्रधान कम्बा है। कुछ मारवाड़ी श्वेताम्बर भाइयों की दुकानें हैं। दि कुछ भी नहीं हैं । यहांसे ॥) टिकटका देकर विरूर जंकशन जाना चाहिये । (२८३) वीरूर जंकशन । यहांसे १ गाड़ी बेलग्राम, मीरन होकर पूना जाकर मिलती है । इसका हाल आगे लिखा जायगा। १ गाड़ी यहांसे आरसीकेरी बदलकर हासन, मंदगिरि, जनबद्री होकर बेंगलोर मसूर जाकर मिलती है । इसका हाल ऊपर लिख दिया है। यहांसे १ गाड़ी सीमोगा होकर मागे मोटरसे तीर्थली, हमच पद्मावती उल्टा पहिलेकी स्टेशन होता हुमा रायचूर नाकर मिलती है। इसका हाल भी ऊपर लिखा है। मद्राससे १ गाड़ी नोलारपेठ, पोडनूर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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