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________________ १५८ ] जैन तीर्थयात्रादर्शक | नहीं है। इसी देश में दो तीन मंजलपर दर्शन रहता है, पूजाका erfaकार उपाध्याय लोगोंके आधीन है । वीमपंथी आम्नायके लोग यहांपर हैं । श्वेतांबरोंका झगड़ा नहीं है। केला, फल, फूल, लड्ड, पुरी, कपूर, घृत, तेल, दीपक आरती हमेशा चढ़ती है। पञ्चामृत अभिषेक होता है। चावल, रोटी, पुरी आदि भी चढ़ाते हैं। कोई जेनी त्यागी कोई २ फल, नैवेद्य आप पवित्र जानकर वाते हैं ! मूलबद्री की दूसरी लाईन से रास्ता लिखता हूं । काटपाडीसे सीधा रास्ता मूलबद्रीका है टिकट |||) देकर जोलारपेठका लेलेवे । ( २६५ ) जोलारपेट जं० । यहा से अगर किसीको बेंगलोर जाना हो तो १ ॥ ) रुपया टिकटका देकर पहिले बेंगलोर चला जावे। फिर लौटकर जोलार पेठ आजावे | यहांसे टिकट मंगलोरका ||) देकर लेलेवे । एरोडा जंकशन पड़ता है । फिर बेंगलोर और मृलबदी आती हैं । जोलारपेठसे एक रेलवे काटपाडी होकर मद्राप व बेंगलोर जाती है । ( २६६ ) बेंगलोर । यह शहर अच्छा है । लाखोंका व्यापार होता है । चीकपेठ बाजार में दि० जैन मंदिर और धर्मशाला है। मंदिर में बड़ी प्राचीन खड्गासन घातुकी प्रतिमा है । यहांसे ' रेलवे मीरज होकर पूना जाकर मिलती है । १ म्हैसुर होकर मंदगिरी जाती है । और सीकेरी जाकर मिलती है । · ( २६७ ) म्हैमुर | यह शहर बड़ा भारी राजा सा० का साफ स्वच्छ रमणीक है म्हैसुरका राज्य बड़ा है। राजमहल, बाजार आदि देखने योग्य
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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