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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२५१ ओंमें ध्यान करते थे । पहाइकी तलेटीमें २ मन्दिर हैं । पहाड़ो नीचे एक मन्दिर है । उसके ऊपर रंगदार बड़ीर गुफाएं हैं। मिन प्रतिमाएँ रमणीक हैं । यहांका दर्शन करके दुसरा राम्ता पहाइ उपर जाने का है। फिर उपर जानेकी मीदियां बन्धी हैं। पाव मीलका चढ़ाव है, ऊपर दरवाना है, भीतरी पहाड़में उकेरी हुई शांतमुद्रा बहुत प्राचीन १५ हाथ उची खड्दामन श्री नेमिनाथ स्वामीकी प्रतिमा विराजमान है । एक देहरीमें पार्श्वनाथकी प्रतिमा विराजमान है। उमीके पाम वादोभमूरिकी १ बालिम्त चरणपादुका हैं । यहाँका स्थान रमणीक है । यहांकी यात्रा करके नीचे आवे । फिर माधीमंगलमसे भागे रेल जनबद्रीकी तरफ जाती है । मो पहेले पछ लेना चाहिये । हम यहांसे आगे नहीं गये । मो बगवर याद नहीं है । अगर आगे नहीं जाना हो तो लौटकर काटपाड़ी आ जावे । फिर यहांसे किमी भाईको मद्राम जाना हो तो मद्राम जावे | अगर किसीको मूलबद्री नाना हो तो वहांको जावे । गमेश्वर नाकर भी मूलबद्री जा सकते हैं। टिकट ७) रुपया ज्यादः लगता है। मूल बद्रीमे आने हुा. रामेश्वर नानेमें भो ७) का फरक पड़ता है। आगे दो लाईनोंका राम्ता लिम्वता हू । पहिले गमेश्वर होकर मूलबद्रीका राम्ताका उल्लेम्व करता है। काटपाडीसे टिकट ५) देकर मदुगका लेवे । बीचमें बील्लुमपुर गाडी बदलकर मदुग नंकशन उतर पडे । (२०८) मदुरा जंकञ्चन । यह शहर बहुत बड़ा भारी तालाबके बीचमें बसा हुमा है। मगर १ बड़ा सम्बा-चौड़ा कुंड है। उसकी दीवाकोपर मेन
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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