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________________ १४८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । फिर मिट्टीके मटके में भर देते हैं किसीको कुछ देकर देख लेना चाहिये । जगन्नाथपुरी समुद्रके नीचे टापूपर वसा है। समुद्र, नाव, जहान, देखें । फिर कुछ खरीदना हो तो खरीदे । नहीं तो ।) देकर ग्वुरदा रोड उतर पड़े। (२४९) खुरदा गेड (जंकशन)। म्टेशनसे १ मीलपर १ बड़ा भारी मंदिर वैष्णवोंका है। उसमें चांदी सोनेके जड़ावका काम होरहा है। अगर किसीको देखना हो तो देख आना चाहिये । यहांसे १ रेलवे पुरी, १ खड्गपुर व १ वालटेर वेझवाड़ा होती हुई मद्रास जाती है। विशेष-जिन भाइयोंको मद्रास, रामेश्वर, कांजीवरम्, नैनबद्री मुलबद्री नाना हो तो पहिले मद्रास चला जावे । टिकट १७) के लगभग लगत है । यह राम्ता सीधा और कम खर्चका है । अगर किसीको नहीं जाना हो तो लौटकर खड्गपुर भाजावे | आगे जाना हो जिघर चला जावे । इसका हाल उपर देखो। मद्रास जानेवालोंको सीधा मद्रास चला जाना चाहिये । डाक गाड़ीमें जानेसे केवल १॥) ज्यादः लगता है । परन्तु शीघ्र विना किसी तकलीफके पहुंच जाते हैं । (बीचमें वेजवाड़ा उतरना हो तो उतर पड़े। (२५०) बेजवाड़ा। यह शहर मच्छा है। कपड़ेके कारखाने बहुत हैं। बढ़िया बढ़िया स्वदेशी कपड़े बनते हैं। (२५१) मद्रास शहर। यह भी दक्षिण प्रांतमें एक बड़ा मारी शहर है। अंदरेनी
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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