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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक । [११९ rammarnnmmmmmmmmmmmmm (२३२) तनसुखिया। यहांपर कुछ दुकानें जैनियों की हैं । मंदिर नहीं है। चायके कारखाने हजारोंकी संख्यामें यहांपर हैं ! मजूरों की संख्या हनारोंकी है । यहांसे १ रेलवे डिबरूगढ़ जाती है। (२१३) डिवरूगढ़। शहर अच्छा है । १ मंदिर और ४० घर दि० नैनोंके हैं। रायबहादुर मेठ सालगराम चुन्नीलालजी यहांपर रहते हैं । गवर्नमेंटकी ४ कंपनियों का काम करते हैं। इस देशमें सब ग्रामों में इन्हीकी दुकानें हैं। नेल, शक्का, लोहा, लक्कड़, चावल, चायकी कंपनीके मालिक हैं । अंग्रेजी राज्यमें इमकी अच्छा मान्यता है। इनके मुख्य मुनीम छगनमलनी हैं। इनकी आज्ञा खूब चलती है। ३००) माहवार कंपनियोंमे और १५०) माहवार सेठ सा. की तरफसे मिलता है । फिर यहांमे तनसुविया आना चाहिये । तनसुखियासे आगे रेलवे डीगबोई जाती है । टिकट ॥) लगता है। (३४) डिगबोई । यहां पर पूर्वोक्त रायबहादुर सा० की दूकान है । नमीनमेसे कुआ ग्वोदकर १००-१५० हाथ नीचेसे नलके द्वारा काले रंगकी मिट्टी निकालने हैं । काली मिट्टीको उबालकर मशाला देनेसे मिट्टी, पानी, तेल अलग २ होनाने हैं । यह मिट्टी १० यंत्रों में भरी जाती है । तीन भाग दूर होनाता है। तेल ४ नंबर पर मग होनाता है । पहिला नंबर मोटरका श्वेत तेल, दूसरा नंबर हल्का, तीसरा नंबर हल्का पीला तेल, इसमें पानी और माटीका कुछ संबंध रहता है। इससे उसमें धुवां बहुत निकलता है।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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