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________________ २१४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । पाव पलकी खबर नहीं, करे कालकी बात । कुण जाने क्या होयगा, कब ऊंगे परभात ॥४॥ धर्म कार्यमें ढील नहीं, करियो मेरे भ्रात । पाव पलककी खबर नहीं, कब होवे प्रभात ॥५॥ परमपूज्य शिखरजीकी यात्रा करके ईसरी, गिरीडी जाना चाहिये । फिर ३०) रेलकिराया देकर कलकत्ता जाना चाहिये। निस भाईने पहिले चंपापुरकी वंदना न की हो वह यहांसे भागल. पुर जा सकता है। (२२३) कलकत्ता शहर । __ स्टेशनपर हर प्रकारकी सवारी मिलती है । यात्रियोंकी इच्छा हो उसीमें बैठ जाय । स्टेशन माघ मील हरीसन रोड बाजार है । यहांपर १ बाबू सुरजमलजी, २ बाबू रामकृष्णदासनी, ३ बा० बद्रीदासनी जौहरीकी ऐसी ३ धर्मशाला हैं। ये तीनों धर्मशाला बहुत बड़ी हैं। हिन्दु यात्रियोंको भी इनमें उतरनेकी आज्ञा है । पानीका कल, टट्टी, रसोईका कमरा, बाजार, मंदिर आदिका सुभीता है । बेलगछिया स्टेशनसे ४ मील है। वहांपर भी बहुत ही यात्रियोंको आराम मिलेगा। अपनी इच्छानुसार ठहर सकते हैं। अपना सामान हिफाजितसे रखना चाहिये । हर तरहके आदमी आते हैं। बेलगछियाका स्थान खास जैनियोंके लिये है। अच्छी आब-हवा और रमणीक है। शहर कुछ दूर पड़ता है। सिर्फ यही कष्ट है। ट्राम गाड़ी चलती है सो १५ मिनट में ही पहुंचा देती है। टिकट आनेजानेका सिर्फ 4) लगता है । ट्राम गाड़ी रात दिन, हर जगहको जाती है। इसी में बैठकर शहर मच्छी तरहसे देख लेना चाहिये।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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