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________________ ११४ ] जैन तीर्थयात्रादर्शक | अब केवल १० हाथ ऊँचा मानम्भ रह गया है। यहांकी यात्रा करके स्टेशन लौट आना चाहिये। फिर बनारसकी तरफ जानेसे पहिले टिकट कादीपुरका १ ||) देकर लेलेना चाहिये । ( २०१ ) चन्द्रपुरी | सामान स्टेशनपर छोड़कर किसी एक आदमीको साथ लेकर ४ मील दूर पूर्वकी तरफ चन्द्रपुरी जाना चाहिये । चंद्रपुरीको चंद्रावटी कहते हैं । २ मील पक्की, और २ मील कच्ची सड़क है । बनारस से मोटर भी १ ) सवारीमें चन्द्रपुरी भाती है । १४ मील पडता है | रेलसे १५ मील और भाड़ा भी ) लगता है | चाहे जिस रास्ते आना जाना चाहिये । मोटर में पैदल नहीं चलना पड़ता है | रेलमें बहुत पैदल चलना होता है। इससे मोटर से ही यात्रा करना योग्य है । यहांपर चंद्रप्रभुका जन्म हुआ था | यह ग्राम छोटासा है । ग्राममें पुजारी मली रहना है, ग्रामसे थोड़ी दूर गंगाजी बहती है, उसके किनारे दिगम्बरी श्वेतांबरी दो धर्मशाला और २ मन्दिर हैं । इस क्षेत्रपर चन्द्रप्रभुकी आराधना करना चाहिये। फिर कुछ दान मन्दिरको देवें कुछ इनाम पुजारी, मालीको भी देवें। फिर लौटकर स्टेशनपर आवे। यह मन्दिर आरा निवासी बाबृ देवकुमारजीका बनवाया है, बड़ा ही मनोहर है । २ चरणपादुका और ५ प्रतिबिम्ब हैं, भण्डार पुजारीको दे देना चाहिये । ८) का टिकिट लेकर सारनाथ उतरें । ( २०२ ) सारनाथ | यहां भी बनारस से रेल मोटर में आते जाते हैं, स्टेशन से १॥ मील दूर धर्मशाला - मन्दिर है । मन्दिरके पीछे जमीनसे निकली
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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