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________________ ११२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । चाहिये । इस पवित्र क्षेत्रपर मन पवित्र रहता है। यहां बैठकर संभवनाथका ध्यान, स्मरण पूना बड़े शुद्ध भावोंसे करना चाहिये। लौटकर बलरामपुर आना चाहिये । फिर १॥) देकर गोरखपुर उतरना चाहिये । जाने आने में सेटमेटका भाड़ा ३) लगता है। (१९६) गौरखपुर । यह शहर अच्छा है । यहाँपर अन्यमतियों का गोरखनाथका बड़ा प्राचीन मंदिर है लोग आते जाते हैं। स्टेशनमे १ मील दिन धर्मशाला है । और मंदिर भी है । यहांका दर्शन करके फिर तांगा किराया करके २ मील शहरमें बाबू अभिनंदन प्रसाद नीके मकानपर जावे | आप बड़े सज्जन धर्मात्मा पुरुष हैं । गोरखपुरके नामी हाकिम हैं, वहांपर चैत्यालय है । उसका दर्शन करें। एक मकानमें जमीनसे निकली हुई ३ प्रतिमा वैष्णवों की हैं, सो देखकर लौट बावे । फिर यहांसे टिकट 1) देकर नैनग्वार स्टेशनका लेलेना चाहिये । गोरखपुरसे १ रेलवे गौड़ा, १ भटनी, १ लखनऊ, १ दुसरी लाईन जाती है। (१९७) नौनखार। स्टेशनसे किसी एक नानकार आदमीको साथ लेकर ३ मील नंगल में खुकुन्दा ग्रामके दक्षिण तरफ कोटसे घिरा हुमा १ धर्मशाला १ मंदिर, कुआ, चौपट जंगल मैदान है । यहांपर ३ मंदिर प्राचीन हैं । चरणपादुका है इसका पुजारी ग्राममें रहता है। ग्राम छोटासा है। मंदिर ननदीक है । बड़ा खेद है कि यहां भी नैनी नहीं आते हैं । कुछ इंतजाम नहीं है। गौरखपुरकी पंचाबतीकी तरफसे यहांपर पुजारी रहता है। भाईयो ! यहकी पुष्प
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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