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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। रनपुर पंजाब तक जाती है। अब यहांसे टिकटका ॥) देकर विन्दोरा तक लेलेवे । बीचमें बाराबंकी में उतर पड़े। (१८२) बाराबंकी। शहर अच्छा है । स्टेशनसे १॥ मील पर दि० धर्मशाला ३ मंदिर २ और ६० घर दि. जैनियोंके हैं । यहांसे भी त्रिलोकपुर नाते हैं । पर यहांसे १२ मील पड़ता है । सो तांगा किराया बहुत है । विन्दौरसे ४ मील पड़ता है । (१८३) बिन्दौर। यह ग्राम ठीक है । कुछ दि. जैनोंके घर हैं । और एक मंदिर है । यहांसे ४ मील तांगासे त्रिलोकपुर जाना चाहिये । (१८४ ) त्रिलोकपुर। यह १ छोटासा ग्राम है, कुछ घर दि. जैनियोंके हैं, पासमें १ मन्दिर वैष्णवोंका है। धर्मशाला, कुआ, बगीचा है, धर्मशालामें बड़ी दालान है, दालान के पास एक कोटरीमें १॥ हाथ ऊँची बड़ी प्राचीन नेमिनाथकी प्रतिमा है । यह प्रतिमा वैरागी साधुके हाथमें है ! ॥) लेकर दर्शन कराता है। कोठरीमें अन्धेरा रहता है, इससे दीया जलाकर दर्शन करना चाहिये । यहांके दर्शनोंसे आनंद होता है । फिर स्टेशन लौटकर टिकिट ।) देकर सरजू स्टेशनका ले लेवे । सरयूको लकड़मण्डी स्टेशन भी कहते हैं। (१८५) सरयू (लकड़मण्डी)। यहां उतर कर १ मील सरयू नदीके किनारे जाना होता है, फिर टिकिट सरकारी नावका -) लेकर अयोध्या घाटका लेना चाहिये।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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